आर्टिफिशियल पैर पाकर दिव्यांगों के खिले चेहरे: 150 लोगों को मिला कार्बन फाइवर से बना कृत्रिम पैर…नई तकनीक से बने पैर से जीवन आसान

बिलासपुर। जिले में हादसों में पैर गंवाने वाले दिव्यांगों के लिए रोटरी क्लब ने मानवीय पहल शुरू की है। संस्था ने पांच दिवसीय कैंप लगाकर प्रदेश के साथ ही मध्यप्रदेश के 150 दिव्यांगों को आर्टिफिशियल पैर उपलब्ध कराया है। खास बात यह है कि यह पैर रोबोटिक है, जिससे पैर का घुटना मुड़ जाता है और इसे पहनने वाले दिव्यांगों को बैठने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है।
किसी दुर्घटना में अपनी पैर खो चुके लोगों के लिए रोटरी क्लब ऑफ यूनाइटेड एक नई उम्मीद लेकर आया है। क्लब के बिलासपुर के पदाधिकारियों ने अखिल भारतीय विकलांग चेतना परिषद के साथ मिलकर आधुनिक कृत्रिम पैर लगाने के लिए पांच दिवसीय कैंप लगाया है। मोपका स्थित चेतना परिषद के अस्पताल में यह शिविर चल रहा है, जिसमें प्रदेश भर के साथ ही मध्यप्रदेश के दिव्यांगों ने रजिस्ट्रेशन कराया और उन्हें विशेषज्ञ डॉक्टरों की देखरेख में कृत्रिम पैर दिए गए। संस्था के पूर्व अध्यक्ष विकास केजरीवाल ने बताया कि शिविर में डेढ़ सौ से अधिक हितग्राहियों को कृत्रिम पैर उपलब्ध कराया गया है।
विशेषज्ञ डॉक्टर बोले- बहुत कम कीमत में उपलब्ध कराता है प्रभा फूट
गुजरात के भावनगर से आए विशेषज्ञ डॉक्टर विजय नायक ने बताया कि कृत्रिम पैर का इतिहास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का है। इस युद्ध में घायल और पैर गंवाने वालों को नई जिंदगी देने के लिए लकड़ी का पैर दिया गया था। जिसे लगाकर वे वैशाखी की मदद से अपना जीवन गुजर-बसर करते थे। 1970 के दशक में जयपुर फूट ने जगह लिया जिसका नाम कृत्रिम पैर के पंजा के कारण पड़ा, जो पहली बार जयपुर में बना था। अब आधुनिक तकनीक पर आधारित कार्बन फाइबर के पैर बन रहे हैं। उन्होंने बताया कि अलग तरह का पैर 1992 में बनाना शुरू किया है जो अब इतना अपडेट हो गया है कि दिव्यांगों के लिए यह बहुत उपयोगी साबित हो रहा है।

खुद दिव्यांग हैं और दिव्यांगों की कर रहे मदद
भावनगर से पैर बनाने आई प्रभा फुट की टीम में तीन कारीगर दिव्यांग हैं। वे यहां पैर की मांग करने वाले दिव्यांग के नाप लेकर उनको चलने के लिए यहां पैर बना रहे हैं। इस टीम में दिलीप परमार, बटूक सिंह, कांजी रोहितभाई शामिल हैं। बटूक सिंह बताते हैं कि दूसरे दिव्यांगों को चलाने के लिए 15 वर्षों से पैर बना रहे हैं। उन्हें खुशी होती है जब हमारे सामने कोई पैर पर खड़ा होकर चलता है।

वजनी लकड़ी से जयपुर फूट ने दिलाया निजात
मध्यप्रदेश के इंदौर से आए दिव्यांग राजेंद्र सिंह पवार 1978 में भोपाल में केंद्रीय भू-जल बोर्ड में कार्यरत थे, तब सड़क हादसे में उनका पैर कट गया। उन्होंने बताया कि लकड़ी से बने पैर 7-12 किलो तक वजनी थे। लेकिन, कार्बन- फाइबर के पैर का वजन ढाई से तीन किलो के बीच है। इसकी विशेषता है कि इसमें पालथी मोड़कर भी आसानी से बैठ सकते हैं। नई तकनीक से बने पैर से जीवन सरल हो जाएगा।

सेवा ही हमारा उद्देश्य, दूसरी संस्था के लिए मदद के लिए आए आगे
रोटरी क्लब ऑफ यूनाइटेड के पदाधिकारियों ने कहा कि हमारी संस्था का उद्देश्य जरूरतमंदों की सेवा करना है। हमारी कोशिश है कि दूसरी संस्था भी आगे आएं। इससे शहर का नाम बढ़ता है। इस तरह का काम होते रहना चाहिए। हम यह काम कर किसी पर अहसान नहीं कर रहे हैं। आने वाले समय में कोरबा में भी इस तरह का शिविर लगाया जाएगा।