छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े छठ घाट का आकर्षक नजारा: महाआरती के साथ शुरू हुआ सूर्य उपासना का पर्व…दीये और लाइट से रोशन हुआ घाट
बिलासपुर। छठ पर्व यूं तो बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन, अब यह देशभर में मनाया जाने लगा है। छठ पर्व की सुंदरता बिलासपुर में भी दिखाई दी। शुक्रवार को नहाय खाय और अरपा मईया की महाआरती से छठ पर्व की शुरूआत हो गई है। इस दौरान दीयों और आकर्षक लाइटिंग से अरपा स्थित छठ घाट का आकर्षक नजारा देखने को मिला। इस आयोजन में नेताओं ने अरपा नदी के संरक्षण और संवर्धन कर संवारने का संकल्प भी लिया।
सूर्य उपासना का पर्व शहर में पिछले लंबे समय से धूमधाम से मनाया जा रहा है। बिलासपुर में इस पर्व की भव्यता देखते ही बनती है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 21 वर्षों से तोरवा स्थित छठ घाट में बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। छठ पर्व मनाने के लिए अरपा नदी स्थित छठ घाट को दूल्हन की तरह सजाया गया है। शुक्रवार की शाम मां अरपा की आरती में मुख्य अतिथि के रूप में प्रेमदास महाराज (ब्रह्मबाबा) के साथ ही अतिथि के रूप में विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, लोरमी विधायक धर्मजीत सिंह, संसदीय सचिव रश्मि सिंह, शहर विधायक शैलेश पांडेय, बेलतरा विधायक रजनीश सिंह, पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव, महापौर रामशरण यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान, सहकारी बैंक के अध्यक्ष प्रमोद नायक भी मौजूद रहे। आयोजन में नेताओं ने अरपा को शुद्ध रखने व संवारने का संकल्प लिया।
नहाय खाय के बाद आज खरना और कल डूबते सूर्य को देंगे अर्घ्य
चार दिनी इस उत्सव में शुक्रवार को नहाय खाय के साथ शनिवार को खरना किया जाएगा। इसके साथ ही व्रती महिलाएं 36 घंटे का कठिन व्रत शुरू करेंगी। सूर्य आराधना के इस पर्व में सूर्य देव की पूजा अर्चना कर छठी मईया की भी पूजा की जाती है। खरना के अगले दिन यानि की 30 अक्टूबर की शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दौरान व्रती महिलाएं नदी में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य देंगी।
31 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्ध्य देकर करेंगी पारण
30 अक्टूबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महिलाएं रात में घर में छठी मईया की पूजा करेंगी। पूरी रात जागरण के बाद 31 अक्टूबर को तड़के पांच बजे सूर्योदय से पूर्व छठघाट पहुंचेगी। यहां उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद पूजा का समापन होगा और व्रती महिलाएं अपना व्रत तोड़ेगीं।
नहाय-खाय से शुरू होता है छठ पूजा पर्व
इस व्रत की खास बात ये है कि व्रत करने वाले भक्त को करीब 36 घंटों तक निर्जल रहना होता है यानी व्रत करने वाला व्यक्ति 36 घंटों तक पानी भी नहीं पीता है। पहले दिन नहाय खाय होता है। ये उत्सव 4 दिन का होता है। पहले दिन नमक का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान के बाद नए वस्त्र धारण करता है। लौकी की सब्जी और चावल चूल्हे पर पकाते हैं, पूजन के बाद प्रसाद रूप में इसे ही ग्रहण करते हैं।
दूसरे दिन होता है खरना
इस व्रत में दूसरे दिन खरना होता है, इस दिन सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध की खीर बनाई जाती है। इस खीर का सेवन करने का एक नियम है। नियम के अनुसार व्रत करने वाला व्यक्ति जब ये खीर खा रहा होता है, उस वक्त अगर थोड़ी सी भी आवाज वह सुन लेता है तो वह वहीं खीर छोड़ देता है और फिर उसे पूरे 36 घंटों तक निर्जल और निराहार रहना होता है। इसलिए जब भी व्रत करने वाला खरना का पालन करता है, तब घर के लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसके आसपास कोई भी आवाज नहीं की जाती है।
तीसरे दिन सूर्यास्त के समय सूर्य को देते हैं अर्घ्य
तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद ठेकुआ बनाता है और अर्घ्य के समय सूप में फल, केले की कदली और ठेकुआ भोग के रूप में रखकर सूर्य भगवान को चढ़ाता है।सूर्य पूजा के बाद रात में भी व्रत करने वाला निर्जल रहता है और अगले दिन (चौथ दिन) यानी सप्तमी तिथि की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर अपने व्रत पूरा किया जाता है। सूर्योदय के समय दिए गए अर्घ्य के साथ व्रत पूरा होता है।