छत्तीसगढ़ सरकार ने लौटाए गांव: 3 नगर पंचायतों से दर्जन भर गांवों को निकालकर ग्राम पंचायत में किया गया शामिल…ग्रामीणों ने की थी मांग…जानिए पूरा मामला

रायपुर। दशक भर पहले तीन अलग-अलग नगर पंचायतों में शामिल कर लिए गए करीब दर्जन भर गांवों को राज्य सरकार ने वापस लौटा दिया है। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने इसकी अधिसूचना भी प्रकाशित कर दी है। अब ये गांव ग्राम पंचायत का हिस्सा बन गए हैं। इसके लिए ग्रामीण लंबे समय से आंदोलित थे।
नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने बालोद जिले की डौंडी नगर पंचायत की सीमा में शामिल रहे ग्राम पंचायत उकारी को अलग कर दिया है। बालोद की ही नगर पंचायत चिखलाकसा की सीमा से कारूटोला, झरनदल्ली, भोयरटोला और कुंजामटोला को अलग किया गया है। दंतेवाड़ा स्थित बड़े बचेली नगर पालिका की सीमा के महात्मा गांधी वार्ड से बड़ेपारा, शहीद वीर नारायण वार्ड से पांडूपारा, लाल बहादुर शास्त्री वार्ड से तामोपारा, सुभाष चंद्र वार्ड से चालकी पारा, मांझीपारा, कोवा पारा, पटेल पारा, पुजारी पारा, महरा पारा, काया पारा और कुम्हार पारा को अलग कर दिया गया है।
अब ये सभी गांव और बस्तियां अपनी पुरानी ग्राम पंचायतों की व्यवस्था से संचालित होंगी। इन गांवों के लोग लंबे समय से खुद को ग्राम पंचायत में शामिल करने की मांग कर रहे थे। इस मामले में उन्होंने राज्यपाल को भी कई ज्ञापन दिए थे। राज्यपाल अनुसूईया उइके ने ग्रामीणों की मांग पर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को समय-समय पर पत्र लिखकर निर्देश दिए थे। राज्यपाल ने इसके लिए राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा था।
चुनावों का विरोध होता रहा
जिन वार्डों को फिर से ग्राम पंचायत को वापस किया गया है, वहां लगातार नगर पंचायत में शामिल किए जाने का विरोध होता रहा है। डौंडी नगर पंचायत के उकारी में वार्ड 14-15 के लोग हर चुनाव में पार्षद चुनाव लड़ते, जीतने के बाद विरोध में इस्तीफा दिला देते। वहीें चिखलाकसा के कारूटोला, झरनदल्ली, भोयरटोला और कुंजामटोला में पार्षद के लिए कोई प्रत्याशी ही खड़ा नहीं हो रहा था। इसकी वजह से अब तक वहां कोई पार्षद नहीं चुना जा सका।
बस्तर और नरहरपुर के लिए भेजा मेमोरेंडम
राजभवन सचिवालय ने नगर पंचायत प्रेमनगर, बस्तर और नरहरपुर को फिर से ग्राम पंचायत बनाने के लिए भी सरकार को पत्र भेजा है। बताया जा रहा है, यह मामला अभी अटका हुआ है। राज्यपाल ने शेष नगर पंचायतों के ग्राम पंचायतों में विघटन के लिए अब फिर से स्मरणपत्र-मेमोरेंडम लिखा है। बस्तर के लोग अपने गांवों को वापस करने की मांग लेकर पिछले साल अक्टूबर में पैदल चलकर राजभवन तक पहुंचे थे।
यह दिक्कतें हो रही थीं ग्रामीणों को
नगर पंचायत में शामिल होने के कारण उन गांवों में आरक्षण में परिवर्तन हो गया था। मनरेगा खत्म हो गया। ग्रामीण क्षेत्रों को मिलने वाली राशि एवं दूसरी सामाजिक सुविधाएं बंद हो गईं। ग्रामीणों का कहना था, नगर पंचायत में शामिल हो जाने के बाद उनकी स्थिति पहले से अधिक खराब हो गई। ऊपर से उनपर करों का बोझ भी आ गया।