खेल या जिंदगी से खिलवाड़: 13 साल के बच्चे का पेरेंट्स पर साइबर अटैक…मां-बाप के अकाउंट से अश्लील फोटो की पोस्ट…पूछा तो बोला- जासूसी हो रही
जयपुर। राजस्थान के एक स्टूडेंट ने ऑनलाइन गेमिंग की लत में अपने मां-बाप पर ही साइबर अटैक कर दिया। छात्र ने परिवार को डराने के लिए घर में जगह-जगह चिप लगा दीं, जिससे घरवालों को लगे कि कोई उनकी जासूसी कर रहा है। इसके बाद बच्चे ने मां-बाप के अकाउंट से अश्लील पोस्ट करना शुरू कर दिया। परिजन पुलिस के पास पहुंचे तो पूरे मामले का खुलासा हुआ।
जयपुर शहर के हरमाड़ा थाने में एक हफ्ते पहले एक परिवार ने सोशल मीडिया अकाउंट हैक होने की शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद साइबर सेल ने जांच शुरू की तो पता चला कि सारी करतूत 8वीं में पढ़ने वाले 13 साल के बेटे की है। हालांकि, बच्चे ने पुलिस को बताया कि हैकर के कहने पर उसने यह सब किया है। हैकर बोल रहा था कि जो मैं कह रहा हूं..अगर नहीं किया तो तेरे घरवालों को जान से मार दूंगा।
घर में लगाईं डिवाइस और चिप
परिजनों ने बताया कि बच्चा अंकल के फोन पर दिनभर गेमिंग में बिजी रहता था। इसी दौरान उसने ऑनलाइन गेम खेलने वाले दूसरे लोगों से दोस्ती कर ली। इस बीच उसके फोन पर एक लिंक आया। बच्चे ने उसे खोला और मांगी गई सारी डिटेल्स भर दी। परिजनों के मोबाइल नंबर तक और OTP भी शेयर कर दिए।
परिजनों ने बताया कि साइबर ठगी तो नहीं हुई, लेकिन बच्चे ने अंकल के मोबाइल पर माता-पिता के सोशल मीडिया अकाउंट खोलकर अश्लील पोस्ट कर दी। यही नहीं, दोस्तों के जरिए वॉट्सएप पर माता-पिता को भी धमकाया।
पुलिस कमिश्नरेट के साइबर एक्सपर्ट मुकेश चौधरी ने बताया कि इस तरह का केस पहली बार आया है। जांच में पता चला कि बच्चे ने ही यह सब किया है। उसने घरवालों के मोबाइल फोन हैक करने के लिए मोबाइल हैकिंग ऐप इंस्टाल किया। इसके बाद फोन पर अजीब एनिमेशन आने लगे। उसने मोबाइल का पूरा डेटा भी डिलीट कर दिया और घर में ही जगह-जगह पुराने डिवाइस की चिप, ईयरफोन चिपका दिए। जब इनके बारे में उससे पेरेंट्स ने पूछा तो उसने कहा कि उनकी जासूसी की जा रही है।
पुलिस ने बताया कि इस मामले में अब उस व्यक्ति की तलाश कर रही है, जिसके बारे में बच्चा कह रहा है कि ये सब उसने उसे अंजान आदमी के कहने पर किया है।
गेमिंग डिसऑर्डर क्या है ?
WHO ने इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज में गेमिंग डिसऑर्डर को शामिल किया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का गेमिंग पर कोई नियंत्रण नहीं होता। वह गेम को ही प्राथमिकता देने लगता है। बच्चों में आक्रामकता, हिंसक, गुस्सैल होना और अवसाद इसके लक्षण हैं।