दंतेवाड़ा

27 दिन बाद भी ग्रामीण का कोई सुराग नहीं: मासूम बेटे को पिता के घर लौटने का इंतजार…5 पहाड़ों को पार करके पहुंचा प्रशासन

दंतेवाड़ा। जिले में बैलाडीला पहाड़ के पीछे बसे धुर नक्सल प्रभावित लोहा गांव जाने वाले नाले में बहे दो भाइयों में से एक का 27 दिन बाद भी कोई सुराग नहीं मिला है। जबकि दूसरे का शव उसी समय मिल गया था। हादसे के इतने दिन बीत जाने के बाद अब प्रशासन की टीम लोहा गांव तक पहुंची। दोनों के परिजनों से मुलाकात की। साथ ही मृतक के परिजन को मुआवजा देने पर सहमति जताई गई।

भारी बारिश के बीच नक्सलियों के इस गढ़ में टीम का पहुंचना भी आसान नहीं रहा। उफनते नालों, घनघोर जंगल और 5 पहाड़ों को पार करने के बाद यहां तक पहुंचा जा सका। प्रशासन की टीम यहां दो दिनों तक परिजनों से मिलकर मुआवजा के लिए प्रकरण तैयार किया है। गांव वालों ने इस घटना के बाद नाले पर पुल बनाने की मांग की है। दूसरे युवक की मौत होने की आशंका जाहिर की गई है।

पत्नी-बच्चे अब भी बुधराम के घर आने का कर रहे इंतजार

जब टीम मृतक सुखराम और लापता युवक बुधराम के घर पहुंची तो बुधराम की पत्नी और उनके बच्चों की आंखों में दर्द और बुधराम के आने का इंतजार साफ झलक रहा था। अब भी उम्मीद है कि बुधराम जरूर लौटेगा। इधर, ग्रामीणों ने बताया कि बुधराम की मौत हो चुकी है। उसका शव फंसा हुआ है। वहां तक पहुंचा नहीं जा सकता। फिलहाल, इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं है। लाल पानी प्रभावित गांव है।

पुल बनाने की मांग

इस जगह पुल बनाना भी प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा। क्योंकि 5 से 6 कठिन पहाड़ियों और छोटे बड़े नाले को पार कर जाया जा सकता है। यही वजह है कि उस गांव में प्रशासनिक अमला नहीं पहुंच सकता है। गांव पहुंचने वालों में आसपास के गांवों के ग्रामीण, समाजसेवी, महिला पटवारी, सचिव सहित अन्य लोग थे। कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कहा कि सूचना मिलने के बाद हमने राजस्व टीम को गांव भेजा। पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा। एक ग्रामीण की लाश अभी नहीं मिली है। खोजबीन का प्रयास लगातार किया जा रहा है।

यह था मामला

11 सितंबर को जिले के बैलाडीला पहाड़ के पीछे बसे हिरोली के आश्रित ग्राम लोहागांव के सुखराम कुंजाम की नाले में डूबने से मौत हो गई थी। जबकि, बुधराम लापता था। दोनों भाई गांव के ही हूंगा ताती के साथ 11 सितंबर को किरंदूल बाजार आए थे। उन्होंने किरंदूल में अपनी खरीदारी की और वापस अपने गांव जाने के लिए रवाना हुए। वे अपने गांव के समीप नाले के पास ही पहुंचे थे। जिसे पार करते हुए दोनों नाले में डूब गए। हूंगा ताती उनके पीछे थे और उन्हें डूबते हुए देख रहे थे। हूंगा ताती के अनुसार नाला काफी बहाव में था और उन्हें पानी का लाल कलर देखकर डूब जाने का एहसास नहीं हुआ।

दोनों भाइयों को बहता हुआ देखकर हूंगा ताती छटपटाते हुए पूरी रात जंगल में बिताई। जब सुबह पानी कम हुआ तो हूंगा ताती गांव पहुंचे और बुधराम और सुखराम के परिजन और गांव वालों को घटना की जानकारी दी। गांव वाले काफी खोज करने के बाद छोटे भाई सुखराम की बॉडी को खोज लिया। जबकि ग्रामीणों का कहना है बुधराम का शव अभी भी NMDC से निकलने वाले मलबे में फंसा हुआ है। फिलहाल इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं है। नक्सल भय के कारण इलाके के ग्रामीण पुलिस और प्रशासन तक नहीं पहुंचे। घटना के बाद समाज सेवियों की मदद से प्रशासन तक पहुंचकर जानकारी दी। इसके बाद कलेक्टर विनीत नंदनवार ने राजस्व टीम को गांव भेजा।

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