जांजगीर चांपारायपुर

सरकारी अस्पताल में पहली बार गंभीर मरीज का सफल इलाज: पत्थर की तरह सख्त हो गया था दिल…15% ही कर रहा था काम…25 लाख में होने वाली सर्जरी डेढ़ लाख में हुई

रायपुर। प्रदेश के सरकारी दिल के अस्पताल एसीआई यानी एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के डॉक्टरों ने दिल की जटिल बीमारी सीवियर एर्ओटिक स्टेनोसिस विथ हार्ट फेल्योर का सफल इलाज किया गया है। पहली बार ऐसे किसी दिल के मरीज का जिस दिल केवल 15 फीसदी ही काम कर रहा था, उसकी इतनी क्रिटिकल स्टेज में सर्जरी की गई है। केवल यही नहीं टावी तकनीक के जरिए इस तरह की सर्जरी में 25 लाख रुपए से अधिक का खर्च आ रहा था, लेकिन एसीआई के डॉक्टरों ने 25 लाख की इस सर्जरी को ओपन हार्ट के जरिए केवल डेढ़ लाख के खर्च में मरीज का वॉल्व रिप्लेस कर दिया।

दरअसल, जांजगीर में रहने वाले 37 साल के पेशेंट का वॉल्व जन्म से ही खराब था। उम्र बढ़ने के साथ धीरे धीरे ये चट्‌टान की तरह सख्त हो गया था। सामान्य व्यक्ति के वॉल्व का साइज 3 से 4 सेमी होता है। लेकिन इस बीमारी के चलते मरीज का वॉल्व सिकुड़कर केवल 0.7 सेमी ही बचा था। वॉल्व सिकुड़ जाने के कारण पूरे शरीर में खून नहीं पहुंच पा रहा था। एसीआई में इस सफल आपरेशन को करने वाले डॉ. कृष्णकांत साहू के मुताबिक जन्मजात होने वाली दिल की इस बीमारी में मरीज को पता भी नहीं रहता है और उसका हार्ट धीरे धीरे काम करना बंद कर देता है।

सरकारी दिल के अस्पताल में जब ये मरीज आया तो उस वक्त उसका हार्ट केवल 15 फीसदी ही काम कर रहा था। अगर वक्त रहते सर्जरी नहीं की जाती तो उसकी जान कभी भी जा सकती थी। क्योंकि ऐसी स्थिति में मरीज के बचने के चांस न के बराबर होते हैं। यहां तक कि 80 से 90 प्रतिशत मरीजों की मौत तो आपरेशन के दौरान ही हो जाती है। एसीआई में अब से पहले कभी भी इतनी अधिक गंभीर स्थिति में पहुंच चुके किसी मरीज का आपरेशन नहीं किया गया है।

मरीज को पहले टावी विधि से सर्जरी कर वॉल्व ट्रांसप्लांट करने की सलाह दी गई थी। लेकिन इसमें 25 लाख से अधिक का खर्च आता। ऐसे में एसीआई में हमने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए मरीज का ओपन हार्ट आपरेशन करना तय किया। इतने जटिल आपरेशन के लिए दक्ष सर्जन के साथ कार्डियक एनेस्थेटिस्ट, परफ्यूजनिस्ट और क्रिटिकल केयर को करने वाले दक्ष नर्सिंग स्टाफ की जरूरत होती है।

8 दिन में ही मरीज हो गया स्वस्थ

डॉक्टरों के अनुसार इस क्रिटिकल सर्जरी के बाद मरीज आठ दिन तक अस्पताल में रहकर पूरी स्वस्थ हो गया है। दरअसल, टावी तकनीक बहुत अधिक खर्चीली होती है। आमतौर पर बुजुर्ग मरीजों के वॉल्व का प्रत्यारोपण इस विधि से किया जाता है। टावी विधि से लगाया गया वॉल्व 15 से 20 साल की ही चलता है। जबकि ओपन हार्ट तकनीक के जरिए इस मरीज टाइटेनियम का कृत्रिम वॉल्व लगाया गया है।

क्रिटिकल स्थिति में पेशेंट के ओपन हार्ट के जरिए वॉल्व को ट्रांसप्लांट किया है। ऐसी क्रिटिकल स्थिति में मरीज का बचना मुश्किल होता है, दिल पत्थर की तरह सख्त हो जाता है। - डॉ. कृष्णकांत साहू, एचओडी एवं हार्ट चेस्ट एंड वेस्कुलर सर्जन

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