छत्तीसगढ़ में अफसरों का बड़ा कारनामा: करोड़ों की सरकारी जमीन बेच दी…पट्टे की जमीन का कराया डायवर्सन…स्टांप शुल्क बचाने बताया कृषि भूमि…हटाए गए भू-अभिलेख अधीक्षक
बिलासपुर। जिले में सरकारी अफसरों ने मिलीभगत कर शहर से लगी सरकारी जमीन ही बेच डाली। खास बात यह है कि कृषि पट्टे की इस जमीन को बेचने के साथ ही इसका डायवर्सन भी कराया गया। जबकि पट्टे की कृषि भूमि का डायवर्सन नहीं हो सकता है। इसके बाद स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए फिर इसे कृषि भूमि बता दिया गया। करीब 10 करोड़ से ज्यादा के इस घोटाले के सामने आने के बाद अब औपचारिकता का खेल शुरू हो गया है। कलेक्टर ने भू-अभिलेख शाखा अधीक्षक को हटा दिया है। हालांकि अभी जांच जारी है।
दरअसल, नामांतरण पंजी साल 2019-20 क्रमांक 834, 835, 836 खसरा नंबर 992/9 में भू-स्वामी विमला अजमानी पति हरबंश अजमानी की शासकीय पट्टे से प्राप्त भूमि का है। उन्होंने यह जमीन किशन यादव पिता जीपी यादव रकबा 1.10 एकड़, अन्नू मसीह पति प्रवीण मसीह रकबा 0.56 एकड़, सुनील सिंह पिता अशोक सिंह रकबा 0.55 एकड़ को बेच दी थी। प्रकरण में हर जगह नियम विरुद्ध तरीके से काम किया गया। शासकीय पट्टे की जमीन का डायवर्सन नहीं हो सकता। फिर डायवर्सन कर दिया गया।
करोड़ों की भूमि, 11 लाख 50 हजार का स्टाम्प शुल्क
मामले में 10 करोड़ 45 लाख 44 हजार रुपए की रजिस्ट्री में स्टांप शुल्क ही 1 करोड़ 4 लाख 54 हजार का होता है। लेकिन रजिस्ट्री कराने वालों ने कृषि भूमि का लाभ लेते हुए सिर्फ 11 लाख 50 हजार 510 रुपए ही स्टांप शुल्क दिया। मामले में अधिवक्ता प्रकाश सिंह ने कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर को शिकायत देकर पटवारी कौशल यादव, डायवर्सन शाखा प्रभारी, खरीदी-बिक्री करने वाले सभी लोगों के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कराने के लिए आदेशित करने की मांग की है। इसके साथ ही इस जमीन की खरीदी बिक्री पर रोक लगाने और उसे फिर से राजस्व अभिलेख में दर्ज करने की भी मांग की है।
इसलिए पट्टे की जमीन का नहीं हो सकता डायवर्सन
धारा 181 छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता के अंतर्गत स्पष्ट प्रावधान है कि पट्टे से प्राप्त भूमि के मद में या शर्तों का उल्लंघन होने से पट्टा निरस्त हो जाता है। धारा 165,7 के अंतर्गत प्रावधान है कि शासकीय पट्टे से प्राप्त जमीन की खरीदी बिक्री सिर्फ कलेक्टर की मंजूरी से हो सकती है। किसी भी जमीन को जब पट्टे में दिया जाता है तब बी-वन के 12 वें कॉलम कैफियत में अहस्तांतरणीय टीप भी लिखा होता है, जिससे की शासन से दी गई जमीन का उपयोग भू-स्वामी ही करे।
निस्तार पत्रक के बिना ही पट्टे की जमीन की टुकड़ों में हो गई रजिस्ट्री
स्पष्ट प्रावधान है कि जब कोई भूमि निस्तार पत्रक में होती है तब उसे अलग करने का आदेश एसडीएम या कोर्ट ही दे सकता है। इस मामले में खसरा नंबर 992/9 की रकबा 4 एकड़ जमीन वर्ष 1979 में विमला पति हरबंश आजमानी को वर्ष 1979 में शासकीय पट्टे से कृषि कार्य के लिए प्राप्त हुई थी। लेकिन, अतिरिक्त कलेक्टर के न्यायालय से 1 जनवरी 2016 बिलासपुर के प्रकरण क्रमांक रा.प्र.क. 21/अ-2/2014-15 इस जमीन का आवासीय डायवर्सन करा लिया गया। जबकि शासकीय पट्टे की जमीन न तो निस्तार पत्रक से अलग हुई और न ही अधिकार अभिलेख में दर्ज हुई।
कृषि जमीन के नामांतरण का ऐसे हुआ खेल
जमीन पहले से डायवर्टेड थी। लेकिन डायवर्सन शाखा प्रभारी ने भू-स्वामी को फायदा दिलाने के लिए डायवर्टेड जमीन को कृषि भूमि बताकर उसका नामांतरण कर दिया, जिससे रजिस्ट्री के वक्त उसकी कीमत कम होने पर स्टांप शुल्क भी कम लगे। इससे शासन को स्टॉम्प शुल्क के रूप में नुकसान हुआ।
इस तरह समझिए स्टॉम्प शुल्क का गणित
डायवर्टेट जमीन की रजिस्ट्री के समय स्टांप शुल्क, उपकर और ब्लाक मूल्य का निर्धारण वर्गफीट के हिसाब से तय किया जाता है। इस प्रकार इस जमीन का रकबा 4 एकड़ या 1,74,240 वर्गफुट जमीन के ग्राम मोपका के शासकीय मूल्य 600 रुपए वर्गफीट के हिसाब से 10 करोड़ 45 लाख 44 हजार रुपए होता है, जिसका स्टांप शुल्क 10 प्रतिशत के हिसाब से 1 करोड़ 4 लाख 54 हजार रुपए है। जमीन की बिक्री के समय डायवर्टेड जमीन को छलपूर्वक कृषि भूमि बता कर स्टांप शुल्क केवल 11 लाख 50 हजार 510 रुपए दिया गया।
SDM की जांच के बिना ही हटाए गए भू-अभिलेख अधीक्षक
कलेक्टर डॉ. सारांश मित्तर ने इस पूरे मामले की जांच के लिए SDM पुलक भट्टाचार्य को निर्देशित किया है। उन्होंने सभी बिंदुओं पर जांच करने की बात कही है। लेकिन, उनकी जांच शुरू होने से पहले ही कलेक्टर ने भू-अभिलेख शाखा के अधीक्षक दुष्यंत कीर्तिमान कोशले को हटा दिया है। हालांकि आदेश में प्रशासनिक दृष्टिकोण से उनका तबादला बेलगहना तहसीलदार के पद पर करने का उल्लेख है। माना जा रहा है कि इस गड़बड़ी के लिए ही उन्हें भू-अभिलेख शाखा से हटाया गया है।