रायपुर

रायपुर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं आया पटरी पर…सिर्फ पौने चार हजार घरों में व्यवस्था

रायपुर। राजधानी में गिरते भूजल स्तर को बनाए रखने के लिए शहर के बड़े-बड़े भवनों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (आरडब्ल्यूएच) लगाना अनिवार्य है। शासन के आदेश के बाद भी राजधानी वासी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। रायपुर नगर निगम के अंतर्गत अभी तक सिर्फ पौने चार हजार घरों में ही रेन वॉटर हार्वेस्टिंग लग पाया है और तीन हजार निर्माणाधीन मकानों में लगाने के लिए निगम से अनुमति ली है। बाकी के मकानों में अभी तक रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लग पाया है।

वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो निगम से अनुमति लेने के बाद अपने घरों में आरडब्ल्यूएच नहीं लगवा रहे हैं। राजधानी में आरडब्ल्यूएच नहीं लग पाने की प्रमुख वजह रायपुर नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही है, क्योंकि अधिकारी अनुमति देकर भूल जाते हैं। विशेषज्ञ का कहना है कि राजधानी के यदि सभी मकानों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लग जाता है तो गर्मी में राजधानी वासियों को पानी की किल्लत से नहीं जुझना पड़ेगा।

वहीं, नगर निगम के अधिकारी का कहना है कि जल संरक्षण को लेकर निगम गंभीर है। इसे कड़ाई से पालन कराया जाएगा। ज्ञात हो कि रायपुर नगर निगम अंतर्गत छोटे-बड़े मिलाकर कुल साढ़े तीन लाख मकान हैं, जिनमें 1,500 स्क्वायर फीट के मकान में आरडब्ल्यूएच लगाना अनिवार्य है। नईदुनिया की टीम ने सोमवार को राजधानी के कबीर नगर, डंगनिया, डीडी नगर, श्रीनगर, गायत्री नगर, गुढ़ियारी, प्रोफेसर कालोनी में पड़ताल की, जहां चौंकाने वाली बात सामने आई है।

इन इलाकों के ज्यादातर मकानों में आरडब्ल्यूएच नहीं लग पाया है। आरडब्ल्यूएच सिस्टम न लगाने वालों के खिलाफ निगम जोन स्तर पर कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देता है, जिसका खामियाजा राजधानी की जनता को उठाना पड़ रहा है।

नक्शा पास कराते समय निगम जमा करा रहा पैसा

निगम से मिली जानकारी के अनुसार राजधानी में 1,500 स्क्वायर फीट के ऊपर के मकान का नक्शा पास करने के लिए अनिवार्य रूप से वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना है। नक्शे की फीस के साथ निगम इसके लिए सुरक्षा निधि जमा करवाता है। जब मकान मालिक सिस्टम लगाना प्रमाणित कर दे, तब यह रकम लौटाने का प्रावधान है, लेकिन निगम के पास पौने चाह हजार मकानों में हार्वेस्टिंग सिस्टम लगने का दावा कर रहा है।

वहीं तीन हजार निर्माणाधीन मकान का सुरक्षा निधि के तौर पर करोड़ों रुपये जमा है। बड़े मकानों में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाने वालों से अब निगम प्रति 100 वर्गमीटर (लगभग 1,000 वर्गफिट) निर्माण पर 1,000 रुपए प्रति वर्ष की दर से जुर्माना वसूल करता है। राजधानी में पिछले साल जिले के सभी सरकारी भवनों में यह सिस्टम लग चुका है।

जानिए लोग क्यों नहीं लगवा रहे वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

निगम सूत्रों की मानें तो भवन स्वामी को मकान का नक्शा पास करवाना है, इसलिए मजबूरी में निगम द्वारा वसूल की जा रही राशि को जमा कर देता है। वह मकान तो बना लेता है, लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को नहीं लगवाता है, क्योंकि निगम में कम से कम 15 हजार रुपये की राशि जमा करने के बाद उसे वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने के लिए भी 15 से 20 हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे।

उसके बाद निगम में जमा राशि को लेने के लिए निगम में बार-बार चक्कर लगाने पड़ेंगे, इसलिए भवन स्वामी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा रहे हैं और न ही निगम में जमा राशि को वापस लेने में रुचि दिखा रहे हैं। इसलिए निगम को एजेंसी तय करके भवन स्वामी द्वारा जमा की गई राशि से उसके घर में वॉटर हार्वेस्टिंग लगा देना चाहिए।

इन इलाकों में पानी की अधिक किल्लत

राजधानी सहित प्रदेश में गिरता भूजल स्तर चिंता का विषय है। शहरों में 10 साल पहले 80 फीट खुदाई पर करने पर जमीन से पानी निकल आता था, लेकिन आजकल 200 फीट गहरी बोरिंग कराने पर भी पानी नहीं निकलता। कहीं निकल भी जाता है तो गर्मी में बोर बंद हो जाता है। ऐसे में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ही एकमात्र उपाय है, जिससे भू-जल स्तर बढ़ाया जा सकता है।

यदि हम भू-जल बढ़ाने के लिए जागरूक नहीं हुए तो आने वाले कल में बूंद-बूंद पानी के लिए तरस जाएंगे। राजधानी के खमतराई, मठपुरैना, भाठागांव, टाटीबंध, रांवाभाठा, देवपुरी, पचपेड़ी नाका, मोवा, पंडरी, दलदल सिवनी और कोटा को सबसे ड्राय एरिया माना जाता है। वहीं दूसरी तरफ बिरगांव की बात करें तो यहां की स्थिति और भी खराब है, इसलिए वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना जरूरी है।

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