राजस्थान ने गलत तरीके से हासिल की ICFRE की सिफारिश: छत्तीसगढ़ के विधायक ने डायरेक्टर को पत्र लिखकर जताई आशंका…सिफारिशों को वापस लेने की मांग
रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य कोल फील्ड में परसा, परसा ईस्ट केता बासन और केते एक्सटेंशन में खनन की विशेषज्ञ सिफारिश गलत तरीके से हासिल की गई थी? छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के लोरमी से विधायक धर्मजीत सिंह ने तो कुछ ऐसा ही आरोप लगाया है। धर्मजीत सिंह ने इंडियन कौंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) के निदेशक को पत्र लिखकर आधिकारिक शिकायत भी की है।
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) विधायक दल के नेता धर्मजीत सिंह ने सोमवार को ICFRE के निदेशक को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने लिखा है कि सरकार ने हसदेव अरण्य में जैव विविधता के अध्ययन के लिए आपकी संस्था को जिम्मेदारी दी थी। इसमें आपने केंद्र सरकार के संस्थान वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) की भी मदद ली थी। WII ने जो रिपोर्ट पेश की उसमें पूरे हसदेव अरण्य क्षेत्र को बेहद महत्वपूर्ण जैव विविधता वाला क्षेत्र मानकर परसा ईस्ट केते बासन खदान के खुद चुके हिस्से को छोड़कर खनन की कोई भी अनुमति नहीं देने की सिफारिश की थी। लगभग ऐसी ही फाइंडिंग ICFRE की रिपोर्ट में भी है। उसके बाद भी ICFRE ने यह सिफारिश कर दी कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित खदानों में खनन किया जा सकता है।
इसकी वजह बताई गई कि या तो उनमें खनन शुरू हो चुका है अथवा खनन की अनुमति एडवांस स्टेज में है। विधायक ने कहा है, ऐसी सिफारिश तो ICFRE के मेंडेट में ही नहीं आता। विधायक ने आरोप लगाया है कि राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम की ओर से ICFRE को इस अध्ययन के लिए फंडिंग की गई है। निगम के एमडीओ (माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर) ने ही मौके पर ICFRE के विशेषज्ञों की आवभगत की है। ऐसे में यह संदेह उठना स्वभाविक है कि WII की रिपोर्ट के खिलाफ जाकर चार कोल ब्लाॅक में खनन की सिफारिश कहीं कंपनी के प्रभाव में तो नहीं दी गई है। धर्मजीत सिंह ने ICFRE के निदेशक से पूरी रिपोर्ट की फिर से समीक्षा और हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित घोषित करने की सिफारिश करने की मांग की है।
रिपोर्ट में विरोधाभास की ओर ध्यान दिलाया
अपने पत्र में विधायक धर्मजीत सिंह ने रिपोर्ट की फाइंडिंग के विरोधाभास की ओर ध्यान खींचा है। उन्होंने लिखा, ICFRE की ही रिपोर्ट के मुताबिक तारा कोल ब्लॉक का दो तिहाई हिस्सा अत्यंत घना जंगल है। यह नो-गो स्टडी में दूसरा सबसे अधिक घने जंगलों वाला कोल ब्लॉक था। केते एक्सटेंशन ब्लॉक में 98% घना जंगल है। यह चरनाेई नदी का जलग्रहण क्षेत्र है जिसे संरक्षित करने की सिफारिश खुद रिपोर्ट में की गई है। उसके बाद भी केते एक्सटेंशन को खनन योग्य कैसे माना गया है, इसका स्पष्टीकरण नहीं है। गेज और झिंक नदी का जलग्रहण क्षेत्र सम्मिलित रूप से हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र ही है। गेज, झिंक और अटेम नदियां थोड़ी-थोड़ी दूर पर हसदेव से मिलती हैं। ऐसे में इनको अलग वॉटरशेड मानकर अनुमति देने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
हाथी कॉरीडोर के बफर जोन में खनन की अनुमति कैसे?
विधायक धर्मजीत सिंह ने एक और महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है, ICFRE की रिपोर्ट आने के बाद राज्य सरकार ने लेमरु हाथी रिजर्व की अधिसूचना जारी की। खनन की सिफारिश किए गए चारो कोल ब्लॉक हाथी रिजर्व के 10 किमी घेरे के बफर जोन में आते हैं। इस वजह से भी इन सिफारिशों की समीक्षा कर उन्हें रद्द किया जाना जरूरी है। ICFRE ने अपनी रिपोर्ट ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से हाथी-मानव द्वंद्व के दूसरे इलाकों में फैल जाने की चेतावनी भी दी है। इसके बावजूद चार ब्लॉक में खनन की अनुमति पर सहमति जताने के लिए कोई वैज्ञानिक और तार्किक कारण नहीं हैं।
NGT ने दिया था अध्ययन कराने का आदेश
केंद्रीय वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1 हजार 898 हेक्टेयर में परसा ईस्ट केते बासन कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की। उसी समय भारत सरकार की फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने इस आवंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी। बाद में 2012 में स्टेज-2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया। 2013 में माइनिंग शुरू भी कर दिया गया।
छत्तीसगढ़ के सुदीप श्रीवास्तव ने इसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की। NGT ने भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) से अध्ययन कराने की सलाह दी। वर्ष 2017 में केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केते एक्सटेंशन का अप्रूवल इस शर्त के साथ जारी किया कि दोनों संस्थाओं से हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड की जैव विविधता पर रिपोर्ट ली जाएगी।