बिलासपुर

करंट से झुलसे बंदरों की सेवा की: दुर्घटना में दोनों हाथ गंवा बैठे दो बंदरों को किया स्वस्थ…मूक पशुओं से इतना लगाव कि लोको पायलट की नौकरी छोड़ दी

बिलासपुर। युवावस्था में अच्छी नौकरी, खूबसूरत घर-वर, परिवार सहित कई सपने हुआ करते हैं। इलेक्ट्रिकल एंड टेलीकाम इंजीनियरिंग करने के बाद रेलवे लोको पायलट की ट्रेनिंग के लिए उसका सलेक्शन भी हो गया है, पर उसे रेस्क्यू कर लाए मूक पशुओं के प्रति लगाव, चिंता ने बेचैन कर दिया। लड़की होते हुए भी उसने घर संसार बसाने की बजाय दुर्घटना में घायल, जिंदगी के लिए संघर्ष कर रहे पशुओं को बचाने के लिए जीवाश्रय ही खोल डाला।

ये कहानी कुदुदंड निवासी निधि तिवारी की है, जिसके सेवाभाव को ध्यान में रख कर कलेक्टर सौरभ कुमार ने पशु चिकित्सालय गोकुल नगर में निधि जीवाश्रय के लिए केज का निर्माण करवाया है। निधि बताती हैं कि मूक पशुओं के प्रति उसका लगाव जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी, तब से है। उसकी मां कविता और पिता ओमप्रकाश तिवारी भी पशुओं की सेवा में उनकी मदद करती हैं।

ठेठू-मेठू के हाथ बनी निधि, मल्हरहीन आवाज पहचानने लगी है… निधि ने बताया कि बिजली के तारों से करंट लगने के कारण बंदर के दो बच्चों के दोनों हाथ बुरी तरह झुलस गए। सूचना मिलने पर वह उन्हें रेस्क्यू कर लाई और उसका उपचार किया। उन्होंने उनका नाम ठेठू-मेठू रखा है। उनके झूलने के लिए झूला भी मंगवाया।

मदद को बढ़े हाथ, एम्बुलेंस की दरकार

प्रेमी निधि तिवारी ने एक निजी मीडिया संस्थान से बातचीत मे कि रेस्क्यू कर लाए गए पशुओं के इलाज, खाने-दाने के लिए उसे अलग-अलग लोगों से सहायता लेनी पड़ती है। उनके पिता इलाज पर होने वाला सारा खर्च वहन करते हैं। कुत्ते, बंदर, बकरे के लिए बिस्किट, फल, सब्जियां आदि पशु प्रेमी खुद आकर दे जाते हैं। इलाज से स्वस्थ हो जाने पर वह बंदरों को कानन पेंडारी चिड़ियाघर को सौंप देती हैं।

कुत्ते, बकरा आदि को उन्होंने अभी जीवाश्रय में ही रखा है। पशुओं के इलाज के लिए डा.पीयूष दुबे मुफ्त सेवा देते हैं। वह खुद भी बीमार पशुओं को दवा, सलाइन चढ़ाने, ड्रेसिंग आदि करती हैं। केज की सफाई के लिए निगम की ओर से दो कर्मचारी हैं, परंतु वह खुद भी सफाई करती रहती है, ताकि मूक पशुओं को इन्फेक्शन का खतरा न हो।

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