छत्तीसगढ़ मे जनऔसधि केन्द्रों का हाल: प्रदेश के 223 दवा सेंटरों में लगभग सौ बंद…फिर भी सस्ती दवा से सालभर में मरीजों के 60 करोड़ बचे
रायपुर। आम मरीजों को सस्ती दवाइयां उपलब्ध हों, इसके लिए केंद्र सरकार ने 2016 में प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना की शुरुआत की और छत्तीसगढ़ में 223 स्टोर भी खुले, लेकिन पिछले दो-तीन साल में इनमें से 100 स्टोर में ताले लग चुके हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पड़ताल में यह बात सामने आई कि बीते एक साल में 123 जनऔषधि स्टोर्स से 15 करोड़ रुपए की दवाइयां बिकी हैं। अगर यह सामान्य दुकानों से खरीदी जातीं तो 75 करोड़ रुपए से ज्यादा की होतीं, इस तरह जनऔषधि केंद्रों ने मरीजों के करीब 60 करोड़ रुपए बचा लिए हैं। अफसरों और कारोबारियों के मुताबिक सौ स्टोर बंद नहीं होते और वहां बिक्री इतनी ही होती तो मरीजों के 60 करोड़ रुपए और बच सकते थे। छत्तीसगढ़ में जनऔषधि सेंटरों से दवाइयों की बिक्री बढ़ने लगी है।
मिले आंकड़ों के मुताबिक मई 2022 में देशभर में संचालित जनऔषधि केंद्रों से 100 करोड़ की दवाएं बिकीं, लेकिन इनमें से 2.5 करोड़ रुपए की दवाइयां छत्तीसगढ़ में ही बिक गई हैं। यहां मांग बढ़ रही है, यही वजह है कि नीति आयोग ने छत्तीसगढ़ के 4 जिलों में तत्काल नए जनऔषधि केंद्र खोलने के निर्देश दिए हैं, ताकि मरीजों की जेब पर दवाइयों का बोझ कम पड़े।
पड़ताल के दौरान टीम रायपुर में चल रहे जनऔषधि केंद्रों तक पहुंची। यहां रुटीन में इस्तेमाल में आने वाली बीपी, शुगर और हाईपरटेंशन समेत अन्य जरूरी दवाएं कॉम्बिनेशन के साथ उपलब्ध हैं। 700 दवाओं की सूची चस्पा है। उधर, राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री धनवंतरी जेनेरिक मेडिकल स्टोर खोले हैं। इन स्टोर में भी सस्ती दवाइयां मुहैया करवाई जा रही हैं।
80 प्रतिशत तक सस्ती दवा
जनऔषधि केंद्रों की दवाओं में 50 से 80 प्रतिशत तक की छूट होती है। इन दवाओं की खरीदी केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा की जाती है, जो नॉन ब्रांडेड होती हैं। सिर्फ फॉर्मूला बेस्ड होती हैं। इन दवाओं की गुणवत्ता की जांच के लिए केंद्रीय मंत्रालय की स्पेशल टीम काम करती है।
गौरतलब है, 22 मार्च 2022 को जनऔषधि दिवस पर पीएम मोदी ने कहा था- जनऔषधि केंद्रों से 800 करोड़ की दवाएं बिकी हैं। सरकार मध्यम वर्ग के लोगों की जेब से धन बचाकर उन्हें फायदा पहुंचाने का काम कर रही है। यह मेडिसिन रिवोल्यूशन है।’
विशेषज्ञों की नजर में तीन बड़ी वजहें… जिनसे हर मरीज को जनऔषधि योजना का लाभ नहीं
दवा स्टोर कम- राज्य के कई सरकारी अस्पताल परिसर में जनऔषधि स्टोर नहीं है, यहां तक की रायपुर के कालीबाड़ी जिला अस्पताल में भी नहीं है। रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर में सर्वाधिक स्टोर खोल दिए गए हैं, जबकि कई जिलों में एक भी स्टोर नहीं खोला गया है।
सुझाव- सभी जिलों में जनऔषधि केंद्र खोले जाएं। कम से कम सरकारी अस्पताल परिसर में। ऐसे क्षेत्रों में जहां पर निजी अस्पताल अधिक हों।
ब्रांडेड दवा हावी- सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं, जो प्राइवेट मेडिकल स्टोर में ही मिलती हैं। निजी हॉस्पिटल की खुद की फॉर्मेसी हैं। डॉक्टर्स की लिखी दवा यहीं मिलती है। मरीजों को मजबूरी में महंगी-ब्रांडेड दवाएं उनकी फॉर्मेसी से खरीदनी पड़ती हैं।
सुझाव- सरकारी डॉक्टर सिर्फ जेनेरिक दवाएं लिखें या फॉर्मूला। निजी अस्पताल में इलाज करवा रहे मरीजों को बाहर से दवा खरीदने की छूट हो।
भरोसे की कमी- लोगों में जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता को लेकर अभी भी भरोसा पैदा नहीं हो पाया है। दरअसल कई तरह के आर्थिक कारणों से जेनेरिक दवाइयों का जिम्मेदार लोग ही प्रचार करने से पीछे हट रहे हैं। दूसरी वजह ये है कि सरकार ने इसके लिए कदम नहीं उठाए।
सुझाव- सरकार इनकी जांच करवाएं, रिपोर्ट सार्वजनिक करे। ताकि मरीजों में गुणवत्ता को लेकर भरोसा बने। गुणवत्ता होगी तो डॉक्टर लिखेंगे।
इसलिए…. जेनेरिक दवा स्टोर जरूरी
- दवाइयों के रेट लगातार बढ़ रहे हैं। महंगाई बढ़ने के साथ-साथ ब्रांडेड दवा का रेट बढ़ना बड़ी वजह है।
- कोरोना के चलते व्यवसाय-आय दोनों पर असर पड़ा है, लोगों की आर्थिक स्थिति संभल नहीं पाई है।
- शुगर, हाईपरटेंशन, बीपी के मरीज बढ़े हैं, जो रोज दवा लेते हैं। परिवारों का इसमें काफी खर्च हो रहा है।
- हमारे विशेषज्ञ- डॉ. महेश सिन्हा, सीनियर मेंबर, आईएमए छत्तीसगढ़। डॉ. राकेश गुप्ता, अध्यक्ष, हॉस्पिटल बोर्ड छत्तीसगढ़। अविनाश अग्रवाल, महासचिव, छत्तीसगढ़ दवा विक्रेता संघ।)
केंद्र से जेनेरिक दवा की आपूर्ति में गेप हो जाता था। अभी छत्तीसगढ़ में संचालित जनऔषधि केंद्रों में 700 प्रकार की 3 करोड़ की दवा का स्टॉक उपलब्ध है – अनिश वोडितेलकर, राज्य समन्वयक, पीएम जनऔषधि योजना