बस्तर

सौ जवानों की शहादत: सैकड़ों लैंडमाइंस निकालकर 16 साल में 58 किमी रोड बनी…तब जो माओवादी धमाके करते थे…सरेंडर के बाद वही बने रक्षक

बस्तर। बस्तर में धुर नक्सल प्रभावित इलाके दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच डेथ ट्रैप के नाम से कुख्यात 58 किमी सड़क का अब सिर्फ 3 किमी का निर्माण बाकी है जो दिसंबर तक पूरा होगा और सड़क इसी साल चालू हो जाएगी। पिछले 16 साल से बन रही इस सड़क के निर्माण के दौरान ही घातक नक्सली हमलों में सौ से ज्यादा अर्धसैनिक बलों और पुलिस के जवानों की शहादत हो चुकी है।

2006 से 2012 के बीच सड़क निर्माण की सुरक्षा में उतरी फोर्स के विस्फोट विशेषज्ञों ने पगडंडियों से 100 से ज्यादा बारूदी सुरंगें निकाली थीं। 55 किमी कंक्रीट रोड अब सुरक्षित मानी जा रही है। यह इसलिए संभव हो सका क्योंकि पिछले डेढ़ दशक में इस सड़क पर कई धमाके करने वाले, पुल-पुलिए उड़ाने तथा जवानों पर एंबुश लगाकर घातक हमला करने वाले नक्सली ही सरेंडर करने के बाद पुलिस की खास विंग डीआरजी में लिए गए और इस सड़क की सुरक्षा में तैनात हैं। 90 जवान इस सड़क पर तथा 250 से ज्यादा इसके अगल-बगल की आबादी में लगाए गए हैं। इनकी वजह से यहां नक्सली हमले लगभग रुक गए हैं।

एक मीडिया संस्थान की टीम दोरनापाल से इस सड़क से सफर करते हुए 55वें किमी तक गई, जहां अभी निर्माण चल रहा है। इस सड़क पर ग्रामीणों का थोड़ा-बहुत ट्रैफिक है, लेकिन तकरीबन सौ फीसदी दोपहिया पर ही। एकाध कार निकल जाए तो हर कोई घूरता है। फोर्स पूरे लाव-लश्कर से साथ ही जाती है। जगरगुंडा पर जहां निर्माण चल रहा है, उस साइट को डीआरडी के 90 खूंखार कमांडो घेरे हुए थे। बताया गया कि 250 से ज्यादा जवान आसपास के गांवों में इंटेलिजेंस और काउंटर अटैक के लिए भी तैनात हैं।

इनमें 90 फीसदी से ज्यादा सरेंडर नक्सली हैं

ये वही सड़क है, जिसका हाल में भेंट-मुलाकात के लिए सुकमा प्रवास में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उल्लेख किया था। मौके पर लोगों ने बताया कि यह पूरा इलाका नक्सलियों के अघोषित कब्जे में था। वह नहीं चाहते थे कि सड़क बने और उन तक पहुंचना आसान हो। इसलिए घातक हमले किए गए। लेकिन पिछले तीन-चार साल से हालात काफी बदले हैं। सड़क के विरोध में हमला करनेवाले सरेंडर नक्सली ही इसकी सुरक्षा में तैनात हैं। वह चप्पा-चप्पा और नक्सल रणनीति से वाकिफ हैं, इसलिए हमले कम होने लगे और अब नहीं के बराबर हैं। इससे निर्माण भी तेज हुआ है।

अंग्रेजों के बाद नक्सली कब्जा

जगरगुंडा के जंगल में अंग्रेज छुट्टी मनाने आते थे। इसके बाद व्यापार शुरू हुआ। अंग्रेजों के जाने के कुछ साल बाद यहां नक्सली पनपे और अब यह नक्सलियों की लगभग अघोषित राजधानी है। यह इलाका सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर के सेंटर में है और सभी जगह से दूरी करीब 70-70 किमी है। अभी अरनपुर से जगरगुंडा के बीच 18 किमी सड़क बन रही है।

निर्माण अमले और मशीनों की सुरक्षा में फोर्स के 11 कैंप और 6 थाने

दोरनापाल सुकमा से नेशनल हाइवे-30 पर 35 किमी दूर है। दोरनापाल से जगरगुंडा के लिए 58 किमी का कच्चा रास्ता था। इसी पर सड़क बनी है। दोरनापाल से जगरगुंडा के बीच हर 5 किमी पर केंद्रीय और सशस्त्र बलों के कुल 11 कैंप हैं। इसी सड़क पर 6 थाने भी हैं। राज्य बनने के बाद यहां सड़क का काम शुरू हुआ, लेकिन हर एक-डेढ़ किमी पर नक्सल हमले, धमाके और मुठभेड़ों के निशान तक हैं।

नई राह: 50 हजार लोगों को राहत

सड़क का निर्माण पूरा होने के बाद 15 ग्राम पंचायतों के 50 हजार से ज्यादा लोगों को फायदा होगा। इसमें पोलमपल्ली, कांकेरलंका, तेमेलवाड़ा, चिंतागुफा, चिंतलनार, गोरगुंडा, पुसवाड़ा, गोंदपल्ली, कोंडासावल्ली, कुंदेड़ और जगरगुंडा शामिल हैं। उनके आने-जाने की सुविधा के साथ आर्थिक विकास होगा, क्योंकि लोगों की पहुंच आसान हो जाएगी।

खौफ: 28 टेंडर, ठेकेदार नहीं आए

दोरनापाल-जगरगुंडा रोड के लिए 28 से ज्यादा टेंडर किए गए, लेकिन क्षेत्र में नक्सली खौफ से कोई ठेकेदार नहीं आया। अंतत: पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन ने काम हाथ में लिया। इसके बाद ठेकेदार भी आने लगे और सड़क निर्माण के लिए 3-3 किलोमीटर पैच के ठेके दिए गए। दैनिक भास्कर टीम पहुंची तो 49 किमी कंक्रीट रोड बन चुकी थी।

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