तीन सौ गायों को पालती है खैरागढ़ की ये कामधेनु: दिव्य प्रतीकों वाली गाय का नाम गोल्डन रिकॉर्ड बुक में है शामिल…इस कामधेनु पर चढ़ावे से बाकी गायों का निकलता है खर्च

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर खैरागढ़ है, जहां एक अनोखा कामधेनु मंदिर है। कामधेनु मंदिर में एक गाय है, जिसका नाम है सौम्या। सौम्या का नाम गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है, क्योंकि उसकी पूंछ 54 इंच लंबी है। इसके अतिरिक्त इसके शरीर पर देवी-देवताओं के ऐसे कुछ प्रतीक चिह्न हैं, जिसके कारण इन्हें लोग साक्षात कामधेनु माता मानते हैं। लोग इनके पास अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर जब लोग चढ़ावा चढ़ाते हैं, उससे यहां रहने वाली तकरीबन 300 गायों का खर्च निकल जाता है।
खैरागढ़ का ये कामधेनु मंदिर 2017 में बनाया गया था। उस समय यहां सिर्फ तीन-चार गायें थीं। उनमें सौम्या भी थीं। सौम्या की ख्याति उनके अलग तरह के डीलडौल के कारण बढ़ी। शरीर पर प्रतीक चिह्न की वजह से धीरे-धीरे लोग उनकी पूजा करने लगे और मनोकामना के लिए आने लगे।
गोधन के जानकारों के मुताबिक कामधेनु को लेकर शास्त्रों में जो लक्षण बताए गए हैं, वो सभी इस गाय में हैं, इसलिए इसे कामधेनु कहा गया है और पूज्या माना गया है। मंदिर के मैनेजिंग ट्रस्टी पदम डाकलिया बताते हैं कि वे लोग ऐसे एक मंदिर की परिकल्पना बस कर रहे थे। उन दिनों दो-चार गायें आ भी गईं थीं, लेकिन अचानक सौम्या माता का आना हुआ। ये दूसरी गायों से अलग दिखीं। इनके एक ही थन से दूध आता है, जिसे वे उन बछड़ों को पिलाती हैं जिनकी माताएं नहीं हैं।
उनकी आंखों से निरंतर अश्रुजल बहता है। उनके पीछे के पैरों में कमल दंड बना हुआ है। आगे के एक पैर में तीन लकीरें हैं, जिसे पंडित ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक बताते हैं। एक पैर में पांच लकीरें हैं जिसे पंच तत्व का प्रतीक कहा गया है। शरीर आम गायों की तुलना में पुष्ट और चमकदार है। पीठ अर्धचंद्राकार है। पूंछ भूमि को स्पर्श करती है।
मंदिर में बन रही औषधि
गोमूत्र से यहां औषधि भी बनाई जा रही है। हम इसका दावा नहीं करते कि इससे मरीज ठीक हुए हैं, लेकिन जो ऐसा मानते हैं, वे बड़ा चढ़ावा यहां चढ़ाते हैं और इसके जरिए साढ़े तीन सौ गायें पल रही हैं। इनमें वे गायें हैं, जिन्हें अवैध कारोबारियों से छुड़ाया गया है, इसके अलावा सड़क हादसों में घायल, दृष्टिहीन गायें हैं, जिनकी सेवा की जा रही है। यहां सौम्या के दर्शन दोपहर तीन बजे तक होते हैं।