चिटफंड धोखे में डूबा गांव: 450 परिवारों में 395 परिवारों के लाखों रुपए डूबे…किसी को नहीं मिले पैसे वापस
रायपुर। राजधानी रायपुर के जयस्तंभ चौक से 32 किलोमीटर और नवा रायपुर की सीमा से लगा नेशनल हाईवे पर बसा बड़ा गांव रसनी। साढ़े चार सौ परिवारों की इस बस्ती में 395 से ज्यादा परिवारों की खून-पसीने की कमाई चिटफंड कंपनियों में डूब गई। किसी के 1 हजार तो किसी के 10 लाख रुपए तक डूबे।
जिंदगी भर की बचत गंवा चुके ग्रामीणों में अब पैसे वापसी की बेसब्री इतनी ज्यादा है कि गांव में कहीं भी चिटफंड शब्द सुनाई देते ही एक-एक बुजुर्ग और महिलाएं घर के बाहर हो जाती हैं। 98 साल की कालिंद्री ध्रुव ठीक से खड़ी भी नहीं पा रही थीं, लेकिन चिटफंड सुनते ही घिसटती हुई घर की ड्योढ़ी पर आ पहुंची और दुखड़ा सुनाने लगीं। एक लाख गंवाकर विश्वकर्मा दंपत्ति भी चिटफंड सुनकर ठिठके, फिर पूछने लगे – हमने तो सब कुछ खो दिया। क्या पैसे मिलेंगे?
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रसनी गांव की बुजुर्ग कालिंद्री ने बताया – मेहा अपन नतनीन बर पाई पाई कर पइसा जोड़े रहेंव ताकि ओखर बिहाव कर सकंव (नातिन की शादी के लिए पाई-पाई जोड़ी थी)। फेर मेहा सबो पइसा ला कंपनी खाता में जमा कर देंव (फिर पूरा पैसा कंपनी के खाते में जमा करवा दिया)। वह आगे कुछ कहतीं, उसके पहले ही सामने वाले मकान से निर्मला विश्वकर्मा रसीदों का पुलिंदा लेकर बाहर आ गई। उन्हें दिखाते हुए कहा- देखिए कितना पैसा जमा किया है, एक-एक पाई का हिसाब है।
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हमारा पैसा भी मिलना चाहिए। अब तक वहां भीड़ जमा हो गई। रसनी फोकटपारा सेक्टर-4 के हर मकान से बुजुर्ग, महिलाएं और युवा बाहर आ गए और चिटफंड कंपनियों का रोना रोने लगे। उसी गली में रहने वाले ओंकार ध्रुव और आशीष ने बताया कि 2005 के बाद से ही यहां गरिमा, पल्सग्रीन और एचबीएन कंपनी में पैसे जमा कराने की होड़ मच गई।
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उसी दौरान गांव से गुजरने वाली रोड को फोरलेन करने का काम चालू किया गया। रोड किनारे के मकानों को तोड़ा गया। इसके एवज में लोगों को मोटी रकम मिली। उन पैसों से लोगों ने मकान बनाए। बचे पैसे चिटफंड कंपनी में लगा दिए। मकान भी गया, और पैसे भी नहीं बचे।
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चाय दुकान हो या चौपाल कहीं भी खड़े लोगों से पूछो तो कहेंगे-हम भी डूब गए
यहां 80 फीसदी से ज्यादा परिवारों को चिटफंड कंपनियों ने ठग लिया। चाय की दुकान और चौपाल में बैठे लोगों से जैसे ही सवाल किया- बबा तुमने भी चिटफंड कंपनी में पैसा जमा किया है क्या?
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ये सुनते ही न सिफ वो बल्कि आस-पास मौजूद लोग कहने लगते हैं हां भाई साहब हम सब का पैसा डूबा है। गांव की छोटी सी चाय दुकान के बाहर खड़े बुधारु ने बताया क्या बताएं सर जब तक पैसे ले रहे थे, तब तक रसीद देते थे। पॉलिसी का समय पूरा हुआ तो एजेंट घर आया और बोला आपका पैसा मिलने वाला है, सब रसीदें वापस दें। हम लोगों ने पूरे कागजात दे दिए। हमारे पास तो सबूत भी नहीं बचा।
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रसनी इसलिए खास
तेलीबांधा थाने में रसनी गांव के पीड़ितों की सबसे ज्यादा शिकायतें हैं। थाना प्रभारी विनय दुबे बताते हैं कि गांव वाले जब पूछताछ के लिए आते हैं, तो उन्हें देखकर नहीं लगता कि वे चार-चार, पांच-पांच लाख चिटफंड कंपनी में लगा चुके हैं। एचबीएन, गरिमा और और पल्स ग्रीन सहित दूसरी सभी बड़ी चिटफंड कंपनियों ने अपना ऑफिस तेलीबांधा मरीन ड्राइव के आस-पास ही खोला था। इस वजह से जब कंपनियां भागीं तो पीड़ितों ने तेलीबांधा थाने में ही केस दर्ज कराया।
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प्रदेश के ज्यादातर गांवों में ऐसी ठगी
पुलिस के रिकार्ड के अनुसार रायपुर, महासमुंद, सरगुजा, अंबिकापुर, बैकुंठपुर और राजनांदगांव, दुर्ग ही नहीं धमतरी, कांकेर व बस्तर के दर्जनों गांव में चिटफंड कंपनियों के पीड़ित हैं। कंपनी खुलने के बाद जिन्होंने तुरंत निवेश किया, उन्हें पैसे की धड़ल्ले से वापसी हुई। उन्हें कंपनी पर भरोसा हो गया। लोगों ने कंपनी में जमकर निवेश किया और उसी के एजेंट बन गए। उन्होंने सबसे पहले अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से निवेश करवाया। फिर गांव का गांव निवेशक बन गया।
200 से अधिक एजेंट पर केस वापस होंगे
एसएसपी अजय यादव ने पिछले हफ्ते थानेदारों की बैठक लेकर उन्हें चिटफंड कंपनियों के एजेंटों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने के निर्देश दिए। इसके लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई करने को कहा। साथ ही कंपनियों की संपत्तियों का पता लगाकर कुर्की की कार्रवाई करने को कहा, ताकि निवेशकों को पैसे लौटाए जा सकें।
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