रायपुर

मछली पालन नीति में परिभाषा पर विवाद: सम्मेलन में कहा गया- मछुआ की परिभाषा में वंशानुगत पेशे को जोड़ा जाए…कृषि मंत्री बोले- भ्रम दूर किया जाएगा

रायपुर। छत्तीसगढ़ की नई मछली पालन नीति अभी प्रकाशित नहीं हुई है, लेकिन उसमें मछुआरा शब्द की परिभाषा पर विवाद खड़ा हो गया है। रविवार को रायपुर में हुई धीवर समाज के सम्मेलन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मौजूदगी में यह सवाल उठा। समाज के लोगों ने नीति में मछुआ शब्द की स्पष्ट परिभाषा करने की मांग की।

छत्तीसगढ़ मछुआ कल्याण बाेर्ड के अध्यक्ष एमआर निषाद ने बात उठाई। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में उन्होंने कहा, मछली पालन नीति में मछुआ की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने की वजह से वंशानुगत व्यवसाय से जुड़े समाज के लोगों को नुकसान होगा। दूसरे समाज के लोग नीति का फायदा उठाएंगे।

बाद में कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा, मत्स्य पालकों के लिए मछली पालन नीति बनाई गई है। समाज ने कुछ मुद्दे रखे हैं, उसके अनुरूप कार्य किए जाएंगे। यदि किसी गांव में कोई तालाब निस्तारी के नाम से चिन्हित कर किसी दूसरे वर्ग को आवंटित कर मछली पालन के लिए दिया जाएगा, तो ऐसी स्थिति में संबंधित ग्राम पंचायत के पंच, संरपचों पर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने मछली पालन नीति में मछुआरों को परिभाषा के संबंध में भ्रम को सुधारने का भी आश्वासन दिया।

बाद में मीडिया से बातचीत में मछुआ कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष एमआर निषाद ने कहा, इससे पहले बनी नीति में मछुआ का मतलब यही था कि जो भी मछली पालन कर रहा है वह मछुआ है। सरकार ने कैबिनेट में नई नीति को मंजूरी दी है। वह अभी अधिसूचित नहीं हुई है। लेकिन समाज में यह बात तेजी से फैल रही है कि इस नीति में भी मछुआ की परिभाषा स्पष्ट नहीं की गई है। इसकी वजह से आशंका पैदा हो गई कि दूसरे समाज के लोग नीति का फायदा ले लेंगे। वंशानुगत रूप से मछली पालने और पकड़ने के पेशे में लगा समाज फिर से पिछड़ा रह जाएगा। ऐसे में हम लोगों ने मछुआ शब्द की परिभाषा में निषाद, केवट, ढीमर, धीवर, कहार, कहरा, मल्लाह का स्पष्ट उल्लेख करने की मांग उठाई है।

मुख्यमंत्री बोले- प्रदेश में मछली पालन का बेहतर माहौल

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, हमारे राज्य की औसत मछली उत्पादकता चार हजार मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर हो चुकी है। प्रगतिशील मछली पालक किसान उन्नत प्रजातियों का पालन करके प्रति हेक्टेयर आठ हजार से 10 हजार मीट्रिक टन तक उत्पादन करने लगे हैं। हमारे राज्य की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी है कि यहां मत्स्य पालन के लिए बहुत संभावनाएं हैं। अब प्रदेश में मछली के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध है। सरकार यह प्रयास कर रही है कि मछली उत्पादन में वृद्धि हो।

मुख्यमंत्री ने कहा, अब गांवों के साथ-साथ बड़े-बड़े बांधों को भी मछली पालन के लिए प्रयोग किया जाने लगा है। यहां तक की घर के आंगन में भी टैंक बनाकर मछली पालन कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मछली पालकों को बायो फ्लॉक तकनीकी से मत्स्य पालन को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य कृषकों को 7.50 लाख रुपए की इकाई पर 40 प्रतिशत की अनुदान सहायता दिए जाने का प्रावधान किया गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि धीवर समाज के लिए शासन ने जो योजनाएं बनाई है, उसका पॉम्पलेट बनाकर समाज के सदस्यों के घर-घर वितरित करें और सामाजिक बैठकों में इसकी जानकारी दें।

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