मध्यप्रदेश

गर्भ में गठानों के साथ पल रहा था बच्चा: दोहरे दर्द से गुजरी मां ने दिया बेटी को जन्म…डॉक्टरों ने कराई रोंगटे खड़े कर देने वाली डिलीवरी

भोपाल। शादी के 5 साल तक बेऔलाद रहे। दो- तीन सालों से कई डॉक्टरों को दिखाने और कई मन्नतों के बाद भगवान ने गोद भरी तो बीमारियों ने घेर लिया। ऐसी बीमारियां जो मां के लिए तो घातक थी ही, बच्चे के लिए भी जानलेवा साबित हो सकती थी, लेकिन अंत भला तो सब भला। आखिरकार घर में किलकारी गूंजी और सब ठीक हो गया।

रोंगटे खड़े कर देने वाली ये कहानी छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के रहने वाले संतराम वर्मा और उनकी पत्नी डिगेश्वरी देवी की है। जो भोपाल में रहकर मजदूरी करते हैं। शादी के 5 साल बीतने के बाद भी इस दंपती के बच्चे नहीं थे। फिर इन्होंने भोपाल के जेपी अस्पताल के रोशनी क्लीनिक में इलाज कराया। जिसके बाद पत्नी डिगेश्वरी गर्भवती हुई। इस दौरान जब टेस्ट कराया तो डिगेश्वरी देवी हेपेटाइटिस-बी पॉजिटिव पाई गईं। इससे डॉक्टरों के साथ ही पति संतराम की चिंता बढ़ गई। लेकिन डिगेश्वरी ने इच्छा शक्ति दिखाई।

उसने डॉक्टर्स और भगवान पर भरोसा जताया और कहा कि वो बच्चे को जन्म देगी। इसके बाद डॉक्टर ने उसका इलाज जारी रखा। लेकिन 34 हफ्ते में जब सोनोग्राफी कराई। तो एक और मुसीबत आन पड़ी। डिगेश्वरी के गर्भ में कई गठानें नजर आईं। इन गठानों से बीच बच्चा भी वहीं पल रहा था।

यही नहीं गर्भ में पल रहे बच्चे को विकसित होने के लिए जरूरी पानी (लाइकर) का लेवल मात्र 4 बचा था। अब डॉक्टरों के सामने उसका प्रसव कराने की चुनौती थी, लेकिन डिगेश्वरी और उसके परिवार ने आने वाली संतान की उम्मीद को देख इलाज जारी रखा। जेपी अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रचना दुबे, डॉ आभा जैसानी ने उसको इंजेक्शन देकर गर्भ में पानी का लेवल बढ़ाया और 24 घंटे में जटिल प्रसव कराया। तब जाकर डिगेश्वरी ने बेटी को जन्म दिया।

4 माह के भ्रूण जैसे आकार की गांठ के साथ पला बच्चा

जेपी अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ आभा जैसानी ने बताया कि यह मामला बहुत जटिल था। चूंकि महिला हेपेटाइिटस-बी पॉजिटिव थी और उसकी सोनाग्राफी में बच्चेदानी के अंदर और बाहर कई गठानेें दिख रहीं थीं। सबसे बड़ी गठान का आकार चार माह के भ्रूण के बराबर था। बाकी चार और गठानें थीं। सामान्य स्थिति में गर्भ में पानी का लेवल 17-18 सेंटीमीटर होना चाहिए लेकिन इसके गर्भ में सिर्फ 4 सेमी पानी था।

ऐसे में पानी की पूर्ति करने के लिए उसे इंजेक्शन दिए गए। इससे वाटर लेवल सामान्य हुआ। 34 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में गर्भस्थ शिशु के लंग्स को सामान्य तरीके से एक्टिव करने के लिए इंजेक्शन दिए। इसके बाद ऑपरेशन थिएटर को इस केस के लिए विशेष तौर पर संक्रमण मुक्त करके करीब आधे घंटे तक सर्जरी करके गठानें निकालीं गईं। फिर बच्ची का जन्म हुआ। मां के हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव होने के कारण उसकी नवजात बच्ची को इम्युनोग्लोबिन इंजेक्शन दिए गए। अब मां और बेटी दोनों स्वस्थ हैं।

जेपी अस्पताल के रोशनी क्लीनिक की प्रभारी डॉ रचना दुबे ने बताया कि महिला की शादी के कई साल बाद भी गर्भ नहीं ठहर रहा था। उसके पीरियड रेगुलर नहीं आते थे। एक साइड की ट्यूब ब्लॉक थी। ऐसी कई समस्याएं थीं। उसके पति के स्पर्म डेवलप होने में भी समस्या आ रही थी। उसका ट्रीटमेंट शुरू किया तो वह कंसीव (गर्भ में बच्चा ठहर गया) कर गई। लेकिन टेस्ट में वह हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव आई। बच्चेदानी के अंदर-बाहर गठानें और गर्भ में पानी की कमी ने टेंशन बढ़ा दी। लेकिन फिर सुरक्षित प्रसव कराने के लिए तैयारी शुरू की। इसके गर्भ से करीब 5 गठानें निकालकर बच्ची को सुरक्षित निकाला।

हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव से स्टाफ को रहता है संक्रमण का खतरा

जेपी अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ.राकेश श्रीवास्तव ने बताया कि यह मामला बहुत चुनौतीपूर्ण था इसके लिए हमारे डॉक्टर्स की टीम में डॉ रचना दुबे, डॉ. आभा जैसानी और एनेस्थीसिया विशेषज्ञ डॉ. कुहू ने ओटी को फ्यूमिगेट कराकर प्रसव कराया। चूंकि महिला के हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव होने के कारण स्टाफ को भी संक्रमण का खतरा रहता है लिहाजा स्टाफ ने डबल PPE किट में प्रसव कराया।

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